घूमें दुनिया सारी।
बिना किराया खर्च किये
यह अद्भुत एक सवारी॥
आसमान के नीले जंगल-
में बादल खरगोश।
भरे कुलाँचे सिर के ऊपर-
भरते हममें जोश॥
हम होते बादल से हलके
तो ऊपर उड़ जाते।
आसमान के चाँद-सितारों-
तक ऊपर चढ़ पाते॥
वहाँ पहुंचकर दादी माँ को
करते अपना फोन।
जब वे कहतीं 'हेलो! कौन तुम?'
मैं हों जाता मौन॥
हेलो! हेलो!! कर दादी माँ-
जब हों जाती हैरान।
कहता, मैं हूँ लालू, दादी!
बेटा हूँ शैतान!!
आऊँगा अब फिर सावन में
बूंद-बूंद बरसूंगा।
तुम्हें भिगो दूँगा आँगन में-
तेरी मिट्ठी लूँगा॥
- कुमार दिनेश 'प्रियमन'
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