बडे पेड़ से बोला,
दादा! आता एक आदमी
ले लोहे का गोला।
बोला पेड़ कि नन्हें तुझ पर
रहे सदा हैयाली,
गोला नही कुल्हाड़ी है यह
पेड़ काटने वाली।
इतना सुनकर सहम गया
नन्हा पौधा घबराया
धीरे से पुचकार पेड़ ने
साहस दे समझाया
डर मत नन्हें अभी, कुल्हाड़ी
में तो वेंट नहीं है
अपनी लकड़ी-जाति से हुई
इसकी भेंट नहीं है।
जब तक घर की भेदी
कोई लकड़ी इसे न मिलती
तब तक कितनी भी पैनी हो
नहीं कुल्हाड़ी चलती।
लेकिन जिस दिन हम लोगों में
कोई एक टूटेगा
उस दिन से ही इस उपवन का
बना भाग्य फूटेगा।
जब तक हम सब पेड़ बाग़ में
इक जुट घने रहेंगे
तब तक कोई काट न सकता
हरदम बने रहेंगे।
नन्हें! रखना याद
एकता ही मजबूत धुरी है
फूट खेत में अच्छी होती
घर की फूट बुरी है।
- डॉ० गणेश नारायण शुक्ल
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