Thursday, May 10, 2007

फिर क्या ..... ?

कहते रहो, कहते रहो
जब भी अवसर मिले
सिर्फ आश्वासन देते रहो
अपनी कुर्सी सुरक्षित रखो
गलत, सही अरे, किसी भी तरह .....
"ज़माने का चलन है
राजकाज ऐसे ही होता है"
कहकर सारी बला ऐसे ही टालते रहो !
बेईमानी में ही जिन्दा रह सकोगे
वर्ना गोली के शिकार बनोगे .....
नैतिकता छपाते रहो
नैतिक-अनुष्ठान-संस्थान में जाते रहो !
वचनामृत सुनो बायें कान से
दाहिने से निकाल दो
जैसे जाओ, वैसे ही लौट आओ
जंचता नही ..... अरे ?
कोरे आदर्शों को
लपालपी
'दर्शन' में घोल

गिने-चुने शब्दों में बोल दो .....
यानी सत्य, अहिंसा, प्रेम .....
करने को तुम कुछ भी करो ।
सभा में मनुष्यता का प्रेम-मंत्र फूंको
साफ नही ..... गोपनीय

कथनी और करनी में फर्क रखो
आधी रोटी खाकर मालिक के सपने देखो
समाजवाद-साम्यवाद का नारा बुलंद करो
फिर क्या ..... ?
अगला चुनाव अपना ही है !!

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