Thursday, May 10, 2007

सत्याभिव्यक्ति

अति निकटता में जहर है ?
इसलिये
किसी के भी अति निकट मत रहो !
बेखते नही हो .....
भगवान का मान-सम्मान कितना है ?
अर्चना, वन्दना, साधना-सुमन
सभी कुछ समर्पित है !
क्योंकि वह कहीं दिखता नहीं .....
साधारण बुद्धि के लिए ही नही,
प्रखर बुद्धि के लिए भी वह दूर है
बहुत दूर .....
दर्शन दुर्लभ .....
इसीलिये ..... आस्था है
और सूरज, चांद, सितारे, आसमान
दूर है ..... अच्छा है !
दूर के ढोल सुहावने ?
बड़ी पुरानी कहावत है
एकदम सत्य है
आदमी अपने आसपास संतोष, सुख
प्रगति, शांति, योग, कुछ भी
नही पाता है ?
चाहे सभी के ढ़ेर लगे हो उसके आसपास .....
किन्तु वह भटकता है .....
इधर-उधर ही देखता है .....
इसीलिये वह दुःखी है !

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