पप्पू, तुम कितने अच्छे हो !
राग-द्वेष से मुक्त
भावना सिद्ध
सत्य के शुद्ध
सरल-शिव-सुन्दर बच्चे हो !
पप्पू, तुम कितने अच्छे हो !!
सीधे-साधे
शान्ति-रूप-प्रतिरूप
सलोने-सुगढ़-साहसी
संयम और सनेह
कीर्ति के सच्चे हो !
पप्पू, तुम कितने अच्छे हो !!
माटी का घर बना रहे,
माटी खाते हो,
निर्विकार, तुम गीतकार सा कुछ गाते हो !
मेरे मन अतिशय भाते हो !
तुम भविष्य की मधुर टेक
धागा कच्चे हो !
पप्पू, तुम कितने अच्छे हो !!
मेरा मन करता .....
दिन भर साथ तुम्हारे ही खेलूं ?
जब भी बैठूं, उठूँ और बोलूं -
तुम से बोलूं !
तुम इश्वर की मधुर-मनोहर-रचना
पावन-लच्छे हो !
पप्पू, तुम कितने अच्छे हो !!
This poem is excellent. It is of "Vatsalya Rasa", but it contains deep philosophy.
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