Wednesday, April 25, 2007

आत्मा की आवाज

मुझे नही चाहिऐ
भ्रष्ट आदर्श खोखलापन आकर्षण
और विकर्षण
यह अपनापन .....
छल-दुराव-अभ्यास
दम्भ, ईर्ष्या-प्रमाद
का अनौचित्य क्षण
नैतिकता-संकल्प
क्षणिक आवेश
निराशा, कुंठा और जुगुप्सा का मन
कलुषित काया
विकलित छाया
कोई आया जो पाले मुद्राओं के बल
झूठा-प्यार
बहकती ममता
चांदी की चमचम में चमके
चमकुल समता ?
मेरा मानस दया, प्रेम, शाश्वत अभिलाषी
प्यार लुटाये
और आदमी को ही प्रिय भगवान् बताये
आत्मा की आवाज
जिन्दगी का संघर्षण
सत्य-नेक-अभिव्यक्ति

नव्यतम
यह कविता है

जिसे ह्रदय के स्वर गाते हैं
मनभाते हैं !!

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