मुझे नही चाहिऐ 
भ्रष्ट आदर्श खोखलापन आकर्षण 
और विकर्षण 
यह अपनापन .....
छल-दुराव-अभ्यास 
दम्भ, ईर्ष्या-प्रमाद 
का अनौचित्य क्षण 
नैतिकता-संकल्प 
क्षणिक आवेश
निराशा, कुंठा और जुगुप्सा का मन 
कलुषित काया 
विकलित छाया 
कोई आया जो पाले मुद्राओं के बल 
झूठा-प्यार 
बहकती ममता    
चांदी की चमचम में चमके 
चमकुल समता ?
मेरा मानस दया, प्रेम, शाश्वत अभिलाषी 
प्यार लुटाये 
और आदमी को ही प्रिय भगवान् बताये 
आत्मा की आवाज 
जिन्दगी का संघर्षण
सत्य-नेक-अभिव्यक्ति
नव्यतम
यह कविता है
जिसे ह्रदय के स्वर गाते हैं
मनभाते हैं !!   
 
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