दोस्त, अपने अहसानों का भारी बोझ 
मेरे सिर पर मत डालो
अपनी सहानुभूति 
अपने पास रखो
कौन हो तुम ?
जो मेरी हमदर्दी दुलारो  
वक़्त-बेवक्त तानें कसो 
रहने दो करने को दया 
मुझ पर, मेरे इमान-सम्मान पर 
मैं रह लूँगा अकेला !!
(2)
कितनों की छाती पर रखें पहाड़ 
उन पर बादलों-सा लुढ़कता 
रंगीला-मन ?
मैं खामोश ..... बिल्कुल खामोश 
कुहरे से भरी हुई घाटी के पार देखना चाहता हूँ 
कौन किस झाडी में छुपा है
भालू, चीता या सियार ?
में उसकी पहचान करना चाहता हूँ !!
(३)
हिन्दी कि नयी कविता 
और अखरोट में
मुझे कोई फर्क नही जान पड़ता 
दोनो को ढूंढ़-ढूंढ़ लाता हूँ चाव से
पढता हूँ
खाता हूँ
बडे हाव-भाव से !! 
 
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