राह बनाकर
जो चलता है
वह जीवन है
चट्टानों से जूझ-जूझकर
जो बढ़ता है-
वह जीवन है
जो,
ऊंचे पहाड़ से गल-गल
कल-कल करता
छल-छल बहता
मुक्त वेग से,
मुक्त बढ रहा -
निर्भय-निर्जन
वह जीवन हैं !!
राह बनाकर जो चलता है
वह जीवन है
बन्धन !
बन्धन, यानी मृत्यु
मृत्युमय भय कम्पन है
कैसी भी हो प्रकृति
यही उसका दर्शन है।
राह बनाकर जो चलता है
वह जीवन है !!
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