Saturday, April 28, 2007

युग-आह्वान

उभरो, युग-चिन्तन के छन्द मन-निखारो,
जन-गण-मन
विस्मित-तन
ज्योति पुंज
आकुल लय,
शब्द, भाव-भाषा अवतारो !
उभरो, युग-चिन्तन के छन्द मन निखारो !!
भारती निहारती
सजी हुई आरती
अध्येता मनन मौन
चिन्तन रत, प्रगति यौन
तीव्र वेग, भौतिकता छायी युग-मूल्यों पर
ज्ञान-बिन्दु संचित कर
कोई चुपचाप सिसक जीती अभिव्यक्ति नव्यश्रव्य शोर
द्रश्य भोर
अतिशय गम्भीर प्रश्न ? हल करो उजारो !
उभरो, युग-चिन्तन के छन्द मन निखारो .....
तिल-तिल जल
युग का इतिहास अभी लिखना है
अविरल चल
पग-पग पर पल-पल में सीखना है
देश को विकास-हास-आस नयी देना है
चेतना-प्रदीपो !
जागरण-उजारो !
उभरो, युग-चिन्तन के छन्द मन निखारो !!
रोशनी हमारी है, दीप भी हमारा
सत्य के प्रयोगों का नीति-धर्म सारा

साहस से बढ़ो
और अकुलाया मौन हरो
त्याग, दया, प्रेम-मन्त्र साधना-विचारो !
रुको नही, आगे की और बढ़ो, देखो
चलना ही जीवन है, जीवन भर चलना
संदेसा सूरज का, युग का आह्वान
रोशनी भरो, और रोशनी भरो
निर्भय जन-देवता की आरती उतारो !
उभरो, युग-चिन्तन के छन्द मन निखारो !!

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