Saturday, April 28, 2007

चिन्तन

आज तक कोई ऐसा व्यक्ति नही मिला
जो अपने निजी स्वार्थ से दूर हटकर
कुछ और चर्चा करता ?
मेरा मौन हरता
और स्नेह भरा दिल मेरा अपना कर लेता !!

मेरी पाशविकता को दूर कर
मानवीयता भरता
अंधियारी समेट कर
जीवन की राह पर
ज्ञान-ज्योति बिखेरता
और बल देता
आदमी आदमी-सी जीने की कला में ?
मेरी उदारता, भावुकता और
सलीकेपन को तराशता.....यानी
मुझे सन्मार्ग पर चलने का इशारा
भर कर देना ?
काश, मेरी आत्मा भी ऐसा ही करती,
तो आज तक मर जाता
और ऐसे नही जीं पाता !

उसी कि प्रेरणा, उसी का बल
उसी की कृपा दृष्टि मेरा बल है
जीवन-सम्बल है !!
जितने भी मिले, स्वार्थी-घिनौने,

कुत्सित विचार वाले.....
हे ईश्वर ! वे भी मेरे प्रेरक हैं
उन्हें सदबुद्धि दो
मुझे वे ठगे नहीं .....!!

No comments:

Post a Comment