Saturday, April 28, 2007

मसूरी-२

जिस तरह यहाँ आदमी
खुशहाल नजर आता है
ठीक, ऐसे ही
काश; सारे देश का आदमी दीखता
तो मेरा जीवन युग-युग तक
सार्थक हो जाता.....
बडे-बडे आदमियों की भीड़
बनाव-श्रृंगार की भीड़
रूप-धन की भीड़
प्रणय-मिलन की भीड़
अच्छी-खासी हसीं नयी-पुरानी
अधकचरी उमर की भीड़
सौन्दर्योपासना की भीड़
और भीड़
जिंदा लाशों की
फैशन परस्त चांदनी की चम-चम में
चमकते चेहरों की

दिन-दोपहरी बीच सड़क पर
ढो रहे एक-एक को चार-चार
आदमी ..... बेबस
भूख की तपन
बीबी-बच्चों की क़सम
आदमी खरे सिक्के-सा चल रहा है
सभी कुछ हो रहा है.....
मसूरी पर्वतों की रानी है
खुबसूरत बेशक.....
किन्तु हिन्दुस्तान की तस्वीर तो अधूरी है !!

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