Wednesday, April 25, 2007

सुधियाँ

ये ऊंचे ऊंचे पहाड़
घने जंगल
सर्पीली पगडंडियां
घाटियाँ, झरने और तेज गति से

बहने वाली नदियाँ
सोपानी-खेत
हरे-भरे लहलहाते
मदमाते दृश्यों की भीड़

रिमझिम-फुहार
इन्द्र धनुषों के झूले
थिरक रहीं रस बूंदें .....
सावन का प्यार
मनुहारें .....
पनिहारिन पनघट-घट
रीते-अनुरीते
भरे-अधभरे छलकते
प्रणय-सिन्बु-ज्वार उफनता
प्रियतम परदेश
विकल वियोगिनी व्यथाओं से
लबालब भरी .....
हरी मखमली घास
सुकुमार-आस प्यास बन रह गयी
सुधियाँ सब सपनों में एकदम बदल गई
ढ़ेर-सी भावनाओं के ऊंचे ऊंचे
काले पहाड़
हर वियोगिनी-दृष्टि में 'खुदेड़ गीत' बन गए
कुहरे में सबके सब डूब गए
हम तो इस मौसम से ऊब गए

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