ये ऊंचे ऊंचे पहाड़
घने जंगल
सर्पीली पगडंडियां
घाटियाँ, झरने और तेज गति से
बहने वाली नदियाँ 
सोपानी-खेत
हरे-भरे लहलहाते
मदमाते दृश्यों की भीड़ 
रिमझिम-फुहार 
इन्द्र धनुषों के झूले 
थिरक रहीं रस बूंदें .....
सावन का प्यार 
मनुहारें .....
पनिहारिन पनघट-घट 
रीते-अनुरीते 
भरे-अधभरे छलकते 
प्रणय-सिन्बु-ज्वार उफनता 
प्रियतम परदेश 
विकल वियोगिनी व्यथाओं से 
लबालब भरी .....
हरी मखमली घास 
सुकुमार-आस प्यास बन रह गयी 
सुधियाँ सब सपनों में एकदम बदल गई 
ढ़ेर-सी भावनाओं के ऊंचे ऊंचे 
काले पहाड़ 
हर वियोगिनी-दृष्टि में 'खुदेड़ गीत' बन गए 
कुहरे में सबके सब डूब गए
हम तो इस मौसम से ऊब गए                
 
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