Tuesday, April 24, 2007

पत्र

प्रियवर,
मेरा कोई दोस्त सम्पादक नही है
सच कहता हूँ
बिल्कुल सच
मेरा कोई दोस्त प्रकाशक नही है
यही कारण है
मैं कही छप नही पाता
यश-धन भी लूट नही पता ?

तुम जानते हो -
मुझमे क्या नही है ?
आग है, पानी है, भीषण हाहाकार
और अनहद शांति
जिन्दगी संघर्षमय मानी है
हाँ, एक बात और
मैं किसी के पैर नही छूता
चुपचाप अपने काम में लगा हूँ
तुम्हारी शुभकामनायें .....
पत्र पाकर ख़ुशी हुई
इस बार तुम्हे इतना ही लिख रहा हूँ
भाभी को नमस्ते
बच्चों को प्यार
ढ़ेर सारा दुलार .....
सकुशल हूँ,
पत्रोत्तर देना प्रिय श्री कुमार ।

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