मेरे एक ज़हर पीने से
यदि तुम सभी पा जाओ अमृत 
सुख-समृद्धि शांति और संयम 
स्वास्थ्य, सत्य-भाषण-मर्यादा 
तो दे दो-
सहर्ष, पी लूँगा सारा जहर
ताकि फिर रहें सभी सुखिया 
रह ना जाये बेहरा कहीं कोई दुखिया 
रिरियाता
हाथ फैलाता
पेट और पीठ को सटाता
भूखा-प्यासा-नंगा जर्जर अभागा 
सड़ रही लाशों के ढ़ेर में
घिघियाता आदमी
पिशाचिन-सी मायाविन राजनीति
आग और पानी सब एक साथ रुपया ?
हे ईश्वर,
कैसा युग-दर्शन 
बहुत बड़ी भीड़ और दिशाहीन सर्जन 
भूखा बचपन, प्यासा यौवन 
विद्रोही भावना 
चंचल चितवन 
चटक रहा दर्पण
खनक रहा कंगन 
दर्द भरे चहरे, मुरझाये सेहरे 
युग-प्रति सघर्षण ?
बोला रे-क्या होगा मन.....?             
 
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