Tuesday, April 24, 2007

युग-दर्शन

मेरे एक ज़हर पीने से
यदि तुम सभी पा जाओ अमृत
सुख-समृद्धि शांति और संयम
स्वास्थ्य, सत्य-भाषण-मर्यादा
तो दे दो-
सहर्ष, पी लूँगा सारा जहर
ताकि फिर रहें सभी सुखिया
रह ना जाये बेहरा कहीं कोई दुखिया
रिरियाता
हाथ फैलाता
पेट और पीठ को सटाता
भूखा-प्यासा-नंगा जर्जर अभागा

सड़ रही लाशों के ढ़ेर में
घिघियाता आदमी
पिशाचिन-सी मायाविन राजनीति
आग और पानी सब एक साथ रुपया ?

हे ईश्वर,
कैसा युग-दर्शन
बहुत बड़ी भीड़ और दिशाहीन सर्जन
भूखा बचपन, प्यासा यौवन
विद्रोही भावना
चंचल चितवन
चटक रहा दर्पण
खनक रहा कंगन

दर्द भरे चहरे, मुरझाये सेहरे
युग-प्रति सघर्षण ?
बोला रे-क्या होगा मन.....?

No comments:

Post a Comment