मसूरी कही जाती है 'पर्वतों की रानी' 
सजे-धजे रूप की भीड़ 
रंग-रंगीले चेहरे 
बहुत कम अकेले 
माल रोड की रौनक .....
आदमी-औरतों की भीड़ 
लड़के-लड़कियों की भीड़ 
कुली-कबाडों की भीड़ 
सैलानी-घुमक्कडों की भीड़ 
सबके सब डूब गए हैं 
हुस्न और इश्क के बहुत बडे 
दरिया में .....
कुछ गोताखोर 
बेचारे बोर .....
क्योंकि उनमे समा गया है शोर
चारों और का प्राकृतिक सौन्दर्य
अब भी वैसा ही ताजा है
जैसा कभी किसी ने देखा था । 
मुझे लगता है की पश्चिम ने 
पूरब को ठगा है 
अँधियारा भगा है
किन्तु, वे चेहरे 
सिर्फ, वेश-परिवर्तन किये
ज्यों के त्यों घूम रहे हैं
खुले आम ..... । 
हे भगवान् !
हिन्दुस्तान का यह हिस्सा कितना खुशहाल 
काश, पूरा देश ही ऐसा होता !!
 
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