सत्ताइस मई
फिर आ गई;
एक कसक कुरेदती
लांघती-फांदती
कूदती समय-शिला के वक्ष पर
बलिदानी यश की एक पंक्ति लिख देने .....
अनगिनत शहीदों के देश में
अपने इतिहास की साक्षी ..... ।
एक गुलाब
जो बूढा होकर भी नित्य ताजा ही
दिखता था,
पश्चिम से पूर्व
और उत्तर से दक्षिण तक अपनी खुशबू
से साबका मन मोहता था,
वह अचानक मुरझाकर
झर गया था
और सदा-सदा के लिए
धरती के कण-कण में समा गया था
प्रकृति-पुरुष सबके सब
एक साथ स्तब्ध खोये से रह गए थे
देश का रहनुमा नेहरू मर गया था,
किन्तु उस दिन के ढलते सूरज ने
सनसनाती पवन से एक बात कही थी
कि नेहरू मरा नही, अमर हो गया है
देश-विदेश का मनन हो गया है
शांति का पुजारी हवन हो गया है
सिर्फ एक सुन्दर शरीर खो गया है !
सिसको मत
कल के हिसाब का किताब हो गया है !!
No comments:
Post a Comment