Saturday, April 28, 2007

सह रहे हैं

साले हराम की पी रहे हैं
जिन्दगी आराम की जीं रहे हैं
काम कहाँ ?
नाम लिख रहे हैं
देश नीलाम कर रहे हैं
जी हाँ, जी, खूब छप रहे हैं
बाजारों में खूब बिक रहे हैं
देश का दुर्भाग्य कहकर
नेता, कवि, कलाकार, सर्जक
सरे-आम

लडकियां-रिझाऊं
तड़क-भड़क

लचक-ठसक
चाल चल रहे हैं
चिडियाँ फंसी नहीं
हाथ मल रहे हैं-
जी, हाँ, जी नाम रख रहे हैं
राम-नाम
बिल्कुल बदनाम कर रहे हैं
देश का उजारा
गुम-नाम कर रहे हैं
पी रहा विद्रोह
मौन सारा
सुबह को शाम कह रहे हैं
हम भी
चुपचाप, सह रहे हैं ॥

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