एक पुरानी कहावत है
खरबूजा खरबूजा को देख रंग बदलता है
यही हाल है हमारे देश के
रहनुमाओं का
जन-गण-मन के भाग्य-विधायकों का
अपने लायक नालायकों का ?
देश आंसुओं के घूंट पी रहा है
आज़ादी रांड-सी बिलख-बिलख रोती है
उसका सुहाग, सुख सुविधा
सबके सब जानबूझकर
लुटे हुए बैठे हैं !
आज़ादी कहां जाये ?
डूबने को चुल्लू भर पानी तक नही है !
आदमी आदमी को ठग रहा है !
उजियारा अंधियारी के आगे भग रहा है ?
प्रगति, प्रतिभा, ज्ञान-विज्ञानं
सभी कुछ निजी हित के लिए रह गए है !!
देश टकटकी लगाए .....
करुण चीत्कार
घोर हाहाकार
आदमी स्वयं के लिए भी
ईमानदार नही रह गया है !
आशंकाएं, विद्रोह, विघटन और
स्वर्थान्धवादी दृष्टिकोण हर तरफ .....
हाय रे, बेईमानों को देख
बेईमान बढ रहे हैं
ईमानदार को देख .....
सबके सब हंस रहे हैं !!
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