Monday, April 23, 2007

अनुभूति

कितना फर्क होता है
एक कुंवारे और बियाहे व्यक्ति में?
जितना विश्वास और अविश्वास में
ऐसा कुछ लोगों ने कहा .....
मैंने कहा - ठीक है
हर विश्वास, अविश्वास हजम कर लेता है
अविश्वास, विश्वास नही .....
हर कुंवारा आदमी 'भीष्म' नही होता है
और ना 'हनूमान'
और यह भी सत्य है
कि हर बियाहा व्यक्ति 'राम' नही होता
और ना 'रावण' ..... फिर
समाज अपना निर्णय एकतरफा क्यों दे देता है ?

क्यों, एक कुंआरा आदमी
संदेह के भार से दबाया जाता है ?
और इसे इतना क्यों जलाया जाता है ?
कि वह घुट जाय, मिट जाय
आख़िर क्यों ? वह भी इन्सान है
क्या, वह सामाजिक प्राणी नही ?
उसके लिए क्यों नही है प्यार
और है,
तो क्यों मिलती हार ?
इसके विपरीत हैं बियाहे .....
क्या उनके माथे पर लिखा है
सत्यावतार.....?
पूंछता हूँ, कोई भी बतावे .....!!
कलयुगी अवतार ?

No comments:

Post a Comment