Monday, April 23, 2007

उपदेश

प्रसन्न रहना भी एक कला है
बिल्कुल ठीक है
किसी बढ़े हुए तोंद वाले व्यक्ति की
कहावत है
मेरी निगाह में
यही सबसे बड़ी बगावत है !
जब आदमी भूख, महंगाई
और अव्यवस्था के बोझ पर बोझ से

लदा रहेगा
तो कैसे रह सकता है
प्रसन्न !
यही शोषण का बड़ा मन्त्र है
आदमियों को ठगने का
बेहतरीन तरीका है
प्रसन्न रहना एक कला है
पुराने ज़माने में
आदर्श प्रस्तुत किये जाते थे
किन्तु आज हमे पढाये जाते हैं
लिखाये जाते हैं
और रटाये जाते हैं
किससे क्या कहें ?
सच में
हम सताए जाते हैं !
मुँह बाए चले आते हैं !!
जीवन भर छले जाते हैं,
सिर्फ, छले जाते हैं ?

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