Tuesday, April 24, 2007

कहने दो

तुम आये हो
मुझे ख़ुशी है
सुखी रहो, प्रसन्न रहो !
सदी-गली परम्पराओं को तोडना
बंधकर विवश मत रहना
स्वच्छन्दता गति है
गति जीवन है
संघर्षों की क्या ?
आएंगे, आने दो !
निर्भय सीना ताने तुम आगे बढ़ो !!
जीवन कलबल कल बहने दो
सुख-दुःख सब सहने हैं, सहने दो !
सहने दो !!
कुंठा, निराशा, जुगुप्सा को मत पीना
जो भी मन कहता है, कहने दो !
कहने दो !!
कटु आलोचकों को अपने पास रहने दो !!
सादे-गले लोगों की चालों को
चलने दो !
चलने दो !!
तुम्हे क्या ?
सूरज के साथ जागो

चन्दा के साथ सोओं
कोई कुछ कहता है,

कहने दो !
कहने दो !!

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