Monday, April 16, 2007

करो प्रायश्चित

बन्द करो बकवाद
शराबी गाँव ?
उत्तराखंड !
शर्म हा, शर्म !
गर्म रहने को पीते
उसने कहा-पहाड़
यहाँ ठण्डक होती है
बिना पिए जीवन-बाती मेरी बुझती है !
मुझको आया ताव
कहा-यह घाव ?
मनुजता जिसमे सड़ती
सारे पापाचार इसी में समा गए हैं
और पवित्रता
सिर्फ वासना-बीज-क्षणिक-आवेग
गरीबी का न्यौता है
साहस-सत्य-लगन खोती है
और कर्म पर, अकर्मण्यता
रॉब जमाकर छा जाती है
अरे नरक का द्वार .....
करो यह बन्द
बन्धु, मेरी विनती है
धरती है यह स्वर्ग
उत्तराखंड पुण्य-व्रत-धाम
यहाँ नर नारायण है
सुर व्यर्थ की चीज़
राक्षसी-वृत्ति
छोडो, मेरे बन्धु, मान लो बात?
तुम्हारी संतति
तुमसे माँग रही है भीख ?
क्या तुम उसके सुख -
समृद्धि के शुभ चिन्तक हो
देख सकोगे ?
अपनी आंखों, उसे शराबी
जीवन खोता !
भारतीय आध्यात्मिक गौरव कम होता है
आत्मा का आनन्द जगाओ
स्व पहचानो
यह तो भौतिक नाश बीज है !
फिर ना मिलेगी ऐसी सुंदर देह
व्यर्थ मत इसे गवाओं !
काम करो कुछ
नाम करो कुछ
जग में आकर, खाकर, पीकर
चुप निराश ही चले गए
तो भट्केगी आत्मा
पीढियां सिर धुन धुनकर
पछ्तायेंगी .....

और विवशता विष पीकर
चुप रह जायेगी ?
मित्र, शराब नष्ट करती है
तन-मन

स्मृति खो देती है
धन हरती है
जीवन नरक बना देती है

असमय मृत्यु बुला देती है
दुःख होता है
करो प्रायश्चित .....?"

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