Thursday, January 31, 2008

रिश्ता

देर तक रात मेरे साथ जागा करती है ।
उसकी पलकों का मेरी पलकों से रिश्ता कैसा ॥

मुझको तनहाई में आकर जो रुला जता है ।
हाय ! ये उनके दुपट्टे का लाल रंग कैसा ॥

मैं मनाता ही रहा बात बिगड़ती ही गयी ।
प्यार था मुझसे अगर तो ये झगड़ना कैसा ॥

जख्म भर जायेंगे मुझको तो फिक्र उनकी है ।
उनके हाथो कि खरोचों का हाल है कैसा ॥

मुझको पीने का नही शौक़ है मगर शाकी ।
पीने के बाद सरेशाम संभलना कैसा ॥

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