हैं अमिट ये पांव मेरे
चल रहे है
जो तिमिर में
चिह्न उभरेंगे तभी
जब आंख खोलेंगे सवेरे ।
साथ मेरा ना किसी से
जग ये छोडेंगे
अकेले
चल बसें एक रोज़
हम जो
जन्म फिर लेंगे अकेले ।
भूलकर भी भूलना मत
खोजना तुम
गीत मेरे
हों सके तो छोड़ देना
जिस कुपथ पर पाँव तेरे ।
लौटकर आया ना बचपन
जो गया था
दूर मेले
अब जवानी कट रही हैं
ढुंढ्ने में वो ही मेले ।
हम अकेले तुम अकेले
आये हैं
हम सब अकेले
राह किसकी देखता है
जाएगा तू भी अकेले ।
साथ मेरे ना सही वे
जो कभी थे
मेरे अपने
नाम कर जाएगा ये
अभिषेक अपना ही अकेले ।
ना किसी को थी खबर
जब अश्रुओं से
पृष्ठ भीगे
लेखनी चलती रही थी
दर्द बाहों में समेटे ।
आ खड़ा हूँ मैं समर में
शांति का
परचम लपेटे
देखता हूँ कब तलक
लड़ता रहूंगा मैं अकेले ।
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