चिड़ियों का मधुगान सुनो।
गा-गा कर कहती पूरब से,
झाँका अरुण बिहान सुनो।
समझ रहे हों क्या कहतीं हैं
कल-कल करती ये नदियाँ।
मुझको यूं ही बहते-बहते,
बीत गई अनगिन सदियाँ।
मेरे जल से वसुन्धरा का,
हरा-भरा परिधान सुनो।
चाहे जितनी बाधायें हों,
तुम आगे बढ़ते रहना।
सूरज भले न बन पाना तुम,
दीपक बन जलते रहना।
चलना सदा बनाते पथ पर,
तुम अपनी पहचान सुनो।
विश्व बाटिका सजे तुम्हीं से,
तुम सब सुरभित फूल बनो।
कहीं डूबती कोई नौका-
हों तो उसका कूल बनो।
करके भला किसी का बच्चों,
करना मत अभिमान सुनो।
- मनोरमा पाण्डेय 'मनो'
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