Friday, January 18, 2008

चिड़ियों का मधुगान सुनो।

बच्चों अपनी आँखें खोलो,
चिड़ियों का मधुगान सुनो।

गा-गा कर कहती पूरब से,
झाँका अरुण बिहान सुनो।

समझ रहे हों क्या कहतीं हैं
कल-कल करती ये नदियाँ।

मुझको यूं ही बहते-बहते,
बीत गई अनगिन सदियाँ।

मेरे जल से वसुन्धरा का,
हरा-भरा परिधान सुनो।

चाहे जितनी बाधायें हों,
तुम आगे बढ़ते रहना।

सूरज भले न बन पाना तुम,
दीपक बन जलते रहना।

चलना सदा बनाते पथ पर,
तुम अपनी पहचान सुनो।

विश्व बाटिका सजे तुम्हीं से,
तुम सब सुरभित फूल बनो।

कहीं डूबती कोई नौका-
हों तो उसका कूल बनो।

करके भला किसी का बच्चों,
करना मत अभिमान सुनो।

- मनोरमा पाण्डेय 'मनो'

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