सबके मन को भाये बादल॥
इनका जमघट बढ़ता जाता।
घोर अंधेरा चढ़ता जाता॥
आपस में जब टकराते हैं।
पानी कितना बरसाते हैं॥
घोर शब्द टंकार सुनाते।
चम-चम-चम बिजली चमकाते॥
दूर देश से पानी लाते।
हम सबकी हैं प्यास बुझाते॥
बादल कितने उपकारी हैं।
हम सब इनके आभारी हैं॥
- अनिल किशोर शुक्ल 'निडर'
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