Friday, January 18, 2008

बादल

आसमान में छाये बादल।
सबके मन को भाये बादल॥
इनका जमघट बढ़ता जाता।
घोर अंधेरा चढ़ता जाता॥
आपस में जब टकराते हैं।
पानी कितना बरसाते हैं॥
घोर शब्द टंकार सुनाते।
चम-चम-चम बिजली चमकाते॥
दूर देश से पानी लाते।
हम सबकी हैं प्यास बुझाते॥
बादल कितने उपकारी हैं।
हम सब इनके आभारी हैं॥

- अनिल किशोर शुक्ल 'निडर'

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