Tuesday, January 22, 2008

जागो हिन्दुस्तान उठो!

सिंहो के सर पर आतंकी घेरा है।
सूरज के घर में भी आज अँधेरा है।
हुआ चतुर्दिग कालचक्र का फेरा है।
जागो भारत जागो! अभी सवेरा है।
उठो विश्व के दिव्या शिखर दिनमान उठो।
अभी सवेरा जागो हिन्दुस्तान उठो।

उत्तर में ही महाकाल के
फिर बादल घिर आये हैं।
घाटी के घर-घर में जैसे
फिर से कहर ढहाये हैं।
पाकिस्तानी तानाशाही
ने फिर पर फैलायें हैं।
अपनी भारत माँ का अब
ये मुकुट छीनने आये हैं।
जिसने आजादी से अब तक,
सिर्फ एक ही काम किया।
जिसने अपने घर में रहकर
मेरी नींद हराम किया।
जिसने मेरे सारे अरमानों
को छलनी कर डाला।
जिसने मेरा कच्छ और
कारगिल खून से भर डाला।
जिसने सत्य अहिंसा के
बदले खंजर समशीर किया।
जिसने भारत के माथे पर
अन्तिम खींच लकीर दिया।
उसको ही फिर हमने अपना
नेह निमन्त्रण दे डाला।
उसको ही बापू के बेटों-
ने फिर पहनायी माला।

जिसको धरती के कण-कण का प्यार मिला।
शाहजहाँ की जन्नत का उपहार मिला।
जिसको अपना घर अपना परिवार मिला।
नहर हवेली वाला भी अधिकार मिला।
ममता का ही प्यार उमड़ता चला गया।
फिर भी तानाशाह अकड़ता चला गया।
चला गया तो जाने दो अब जागो वीर जवान उठो।
हुआ सवेरा जागो हिन्दुस्तान उठो।

सुनो-सुनो ऐ दिल्लीवालों
तुमसे भी कुछ कहना है।
आख़िर कब तक घाटी में ही
नदी खून की बहना है।
काश्मीर में आख़िर कब तक
ये उत्पात मचायेंगे।
बेगुनाह भाई बहनों का
कब तक खून बहायेंगे।
आख़िर कब तक माँ बहनों-
की उजड़ेगी तकदीर यहाँ।
और लहू के रंग से लिक्खी-
जायेगी तहरीर यहाँ।
कब तक खिलते ही जायेंगे,
नागफनी के शूल यहाँ।
और नही खिल पायेंगे कब-
तक केशर के फूल यहाँ।
कब तक ये बेमौत मरेंगे
कब तक मरते जायेंगे।
सीमा के प्रहरी भी अपना,
कब तक खून बहायेंगे।
सेना के रण वीर मरेंगे कब-
तक रोज हमीद यहाँ।
आख़िर होते ही जायेंगे,
कितने अमर शहीद यहाँ।

कब तक घावों को सहलाया जायेगा।
हम सब को यूं ही बहलाया जायेगा।
केसर लोहू से नहलाया जायेगा।
साँपों को ही दूध पिलाया जायेगा।
अब जागो हे शंकर! कर विष पान उठो।
हुआ सवेरा जागो हिन्दुस्तान उठो।

इस धरती के कण-कण में,
इतिहास रचाया वीरों ने।
तिलक सर्वदा किया रक्त
से माथे पर समसीरों ने।
आँधी तूफानों के बढ़ते
बदले वेग समीरों ने।
माँ पर आँच न आने दी,
पर धरती के रणधीरों ने।
सिसक रही माँ की फिर से
मजबूर बिलखती आहों का।
टूटे राखी के धागे
उजड़े सिंदूर गुनाहों का।
घाटी में निर्दोष हुए होते
उन नर संहारों का।
निर्विरोध होते आये अब तक
उन्मुक्त प्रहारों का।
एक-एक बदला लेने का
हम सबको प्रण लेना है।
एक-एक अब तक होते
जुल्मों के उत्तर देना है।

केसरिया बाना फिर से धर जाने दो।
श्वेत कबूतर एक-एक उड़ जाने दो।
दुश्मन को अब फिर से मजा चखाने दो।
इससे अन्तिम युद्ध एक हो जाने दो।
उठो देश के वीर शिवा की शान उठो।
हुआ सवेरा जागो हिन्दुस्तान उठो।

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