Thursday, November 1, 2007

मैं हुँ एक हिरन का बच्चा
और यह मेरी कहानी है.
एक पल में मिले ज़िन्दगी,,
तो दूजे में मौत भी आनी है

ज़मीं पर मेरा, वोह पेहला क़दम
फिर दौड्ते हुए वो माँ के पास जाना.
लड़खड़ाते क़दम को आगे बढ़ा के
जा के माँ के आँचल में मेरा छीप जाना..

हरी हरी घास और वह हरी पत्तियाँ..
नयी उमंगे जगाएँ उड़ती हुई तितलियाँ...
हर और देखूँ मैं ईस अजनबी दुनिया को
अपनी सी लगे मेरी माँ की प्यारी सी अखियाँ..

खेलूँ, कुदु, दौडू, भागू,
हर पल मैं अपनी माँ को सताउ
फिर यहाँ वहाँ भाग दौड के
जा के अपनी माँ के पास बैठ जाउ..

ईस ख़ुशी भरे लम्हों में,
एक दिन गम का माहॉल छा गया..
जब शेर मुझे उसके मुह मे लेके
अपना शिकार बना कर चला गया

भागने की कोशिश की थी बहोत..
पर मैं शेर के पंजे से बच ना सका
ज़िन्दगी के उस आख़िरी पल में
अपनी माँ को भी मैं देख ना सका

कुछ पल के लिये ही सही मुझे
ईस अजनबी दुनिया ने अपना बनाया था
मेहसुस कर रहा था माँ की रोती हुई उन आँखो को
जब शेर ने मुझे अपना निवाला बनाया था

मैं हुँ एक हिरन का बच्चा
बस यह मेरी कहानी है.

बस यह मेरी कहानी है. .......!
 

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