Thursday, November 1, 2007

"है तुमको ये वहम कि हम उनके अज़ीज़ हैं,
महफ़िल में उनकी अब हमें.. बे-जाम देखना.'

'मिलकर बड़ों ने घर को.. कब का बाँट दिया है!!!
बच्चों का साहिलों पे.. ज़रा काम देखना.'

'सच बोलने की फिर से ये, बख़्शीश मुक़र्रर,
एक और ज़ख़्म फिर मेरे.. सरनाम देखना.'

'दुनिया के हर सवाल पे, ख़ामोश रहेंगे,
बेग़ैरती का हम पे फिर.. इल्ज़ाम देखना.'

'मज़हब के नाम पे.. लड़े हैं फिर वतन के लोग,
रुसवाई अब वतन की.. सरे-आम देखना.'

'बस्ती ये ग़रीबों की.. बहुत जल्द जलेगी,
शोहरत की आँधियों का.. इंतक़ाम देखना.'

'तारीफ़ इमारत की तो.. हर बार हुई है,
अब नींव के पत्थर को भी.. गुमनाम देखना.'

'मैने कहा था यार !!! मगर तुम नहीं माने,
अब उनसे दिल लगाने का.. अंज़ाम देखना.'
 

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