Thursday, November 1, 2007

अब हम से और अपने दिल को बहलाया नहीं जाता
जिन्हें पाने की हसरत है उन्हीं से गैर कहलाया नहीं जाता

बहुत सोचा नहीं रक्खूँगा पाँव राह-ए-उल्फत में
मगर वो रुप आँखों से पलभर भी टहलाया नहीं जाता

नहीं रोकूँगा अब दिल को कदमबोसी से दिलबर की
ज़ख्मी जिगर ये आँसुओं से और नहलाया नहीं जाता

बयाँ कर दूँगा अपना हाल-ए-दिल महबूब के आगे
देखूँगा कि क्या छालों को फिर भी सहलाया नहीं जाता

दिल पे जो गुजरी उसे जब जान वो लेगी
यकीं है मुझसे बोलेगी था पहले बतलाया नहीं जाता
 

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