"गिरती हुई दीवार पे, अब लोग हँसते हैं,
ऐसे ही हादसों में जबकि.. ख़ुद भी फँसते हैं.'
'धरती की प्यास किस तरह से.. अबके बुझेगी??
बादल भी देखिए तो.. ठहर के बरसते हैं.'
'मंदिर में चढ़ावे की.. सबको फ़िक्र बराबर,
क्या फ़र्क कि बाहर ग़रीब, क्यों तरसते हैं?? '
'अपने गमों को आप.. अब ख़ुद में समेट लो,
सुनते हैं लोग और ग़म पे, फिकरे कसते हैं.'
'उस छोर पे सुरंग के.. एक रोशनी सी है,
उम्मीद रखो तो अभी.. हज़ार रस्ते हैं.'
'वो जो पराए अश्क़, ख़ुशी से सँभाल लें !!!
मेरी नज़र में लोग वो.. सचमुच फ़रिश्ते हैं.'
'बेवजह तमाशे दिखा के.. वो हुए रुख़सत,
वो जिस जगह के हैं.. वहाँ पत्थर बरसते हैं.'
'अंज़ाम अनसुनी सी.. दुआओं का फ़कत ये,
गुलशन में फूल ख़ुश्बुओं के, अब झुलसते हैं.'
'वो अपनी पीठ ख़ुद ही.. थपथपा रहे यारब !!!
जिनके उसूल आज.. शराबों से सस्ते हैं...!!!"
ऐसे ही हादसों में जबकि.. ख़ुद भी फँसते हैं.'
'धरती की प्यास किस तरह से.. अबके बुझेगी??
बादल भी देखिए तो.. ठहर के बरसते हैं.'
'मंदिर में चढ़ावे की.. सबको फ़िक्र बराबर,
क्या फ़र्क कि बाहर ग़रीब, क्यों तरसते हैं?? '
'अपने गमों को आप.. अब ख़ुद में समेट लो,
सुनते हैं लोग और ग़म पे, फिकरे कसते हैं.'
'उस छोर पे सुरंग के.. एक रोशनी सी है,
उम्मीद रखो तो अभी.. हज़ार रस्ते हैं.'
'वो जो पराए अश्क़, ख़ुशी से सँभाल लें !!!
मेरी नज़र में लोग वो.. सचमुच फ़रिश्ते हैं.'
'बेवजह तमाशे दिखा के.. वो हुए रुख़सत,
वो जिस जगह के हैं.. वहाँ पत्थर बरसते हैं.'
'अंज़ाम अनसुनी सी.. दुआओं का फ़कत ये,
गुलशन में फूल ख़ुश्बुओं के, अब झुलसते हैं.'
'वो अपनी पीठ ख़ुद ही.. थपथपा रहे यारब !!!
जिनके उसूल आज.. शराबों से सस्ते हैं...!!!"
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