Thursday, November 1, 2007

एक तुम्हे पाने की खातिर नीद गँवाई चैन गँवाया,
तुमको अपने दिल मे बसाकर जी को कैसा रोग लगाया !
आँसू के कुछ मोती चुनकर सपनो की मालाएँ गूँथी,
प्रेम की उन मालाओ को भी हँस-हँस कर तुमने ठुकराया !
प्यार भरी मुस्कान तुम्हारी माँग रहा था कब से जोगी,
तुमने इस जोगी को अपने द्वार से खाली हाथ फिराया !
तुमने सजाई थी फुलवारी रंग-बिरंगी फूल थे जिसमे,
उन फूलो का रूप दिखाकर मुझको काँटो मे उलझाया !
आज मेरे जीवन के पथ पर छाया है घनघोर अँधेरा,
मेरा सब कुछ लूटने वाले तुमने मुझे किस राह लगाया !
जाने कब तक जीवन पथ पर यूँ ही भटकता रहना होगा,
इतनी लम्बी राह मे अब तक कोई अपने साथ न आया !!!!
 

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