मेरे प्रभु,
मेरी विनम्रता मेरे दोस्त हंसी-मज़ाक की
बात मानते हैं ।
उन्हें अभिवादन करता हूँ
तो वे अपनी प्रभुता का भार मुझ पर डालते हैं
और मेरी सिधाई एवं शालीनता
इनकी दृष्टि में सिर्फ टाल देने की बात रह गयी है
मेरी भावुकता महज़ पागलपन
और कविता बेकार की गप्प
ईमानदारी, सत्यनिष्ठा सब का सब
पापी निगाहों में डूब गया हैं !
सच कहता हूँ इस दिशाहीन
आवारा दम्भ के घेरे में
मेरा मन ऊब गया है !!
खाली बोतलों से मन
रूखे-सूखे अव्यवहारिक क्षण
मदमाते चेहरों की भीड़
मनमानी करते भगवन !!
मेरी साधुता पर कीचड उछालते बेशर्म !
लगता है कबन्धों के गाँव में आ गया हूँ
कहा हैं आदर्श ?
कहॉ उनकी गरिमा ?
यहाँ तो पैमानों ने सब पर नकाब डाल रखा है
और सूरज को भी चाहते हैं
काला जामा पहनाना
ताकि इन्हें और इनकी करतूतों को
कोई देख ना सके ।
हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है। महेश जी बहुत सुन्दर कवितायें लिखी है आपने। क्या आप नहीं चाहेंगे कि आपकी इन कविताओं को बहुत से लोग पढ़ें?
ReplyDeleteइसके लिये आप अपना ब्लॉग "नारद" पर रजिस्टर कराएं। नारद एक साइट है जिस पर सभी हिन्दी चिट्ठों की पोस्टें एक जगह देखी जा सकती हैं।
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