Saturday, April 28, 2007

जनता, अब आती है

मनाते, रहो जयन्तियाँ
समय-धन सभी का अपव्यय करते रहो
देश भाड़ में जाय
अपना काम निकालते रहो.....
तबाही और बढ़ी है
देश की गति गाँव की लढी है !
जो चूं-चररमरर, चूं-चररमरर करती
जनपथ पर भैंसे द्वारा
या बधिया किये हुए बैल द्वारा
खींची जा रही है !
जीवन-बोझ बहुत बड़ा हो गया है ।
सीमित दायरों में जीने का हक क़ैद हो गया है !!
मैं स्वयं ही सिमट गया हूँ,
सकुचा गया हूँ
तुम वास्तव में तुम नही रहे
स्वार्थ सने, पापी दुराचारी
अनाड़ी हो गए हो .....
अपनी ही बात मनवाने के आदी हो गए हो !!
पक्षपात, व्यक्तिवाद निजी धरोहर हो गयी है
तुम्हारी पाली हुई कुतिया महान हो गयी है
क्योंकि तुम महान थे ?
यह एक कटु सत्य है ।
मैं गरीब घर में जन्मा एक छोटा आदमी
और छोटा हो गया हूँ ।
तुम्हारी दृष्टि में बहुत कुछ खोटा हो गया हूँ !!
मेरी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा
सामान्य बातचीत सी रह गयी है ।
और तुम्हारी जाली विज्ञप्ति
कोरे सिद्वांत
झूठे आदर्श
लिजलिजी लकीर सी
देश-विदेश में पोस्टर बनी चिपकी है !
इतना ही नही
मेरी मुस्कान तुम्हारी दृष्टि में
अपराध बन गयी है
मेरी जिंदगी शतरंज के खेल में
ऊंट की चाल-सी हो गयी है
क्योंकि मैं एक छोटा आदमी हूँ
मेरा बाप बड़ा आदमी नही है
मेरी पहुंच बडे-बडो तक नही है
यानी स्पष्ट .....
मैं स्वाभिमानी हूँ

लल्लोचप्पो की बात नही भाती है !
भीतर-बाहर साफ
बिल्कुल साफ ...... शान्ति चाहता हूँ
तुम्हारी मायाविन चाल मुझे नही भाती
मैं तुम्हारा अनुमोदन नही करता हूँ
यानी विरोध करता हूँ .....
बस, इतनी सी बात
तुम्हारी काली करतूतों का पर्दाफाश करता हूँ
तुम मुझसे होनी-अनहोनी सभी कुछ
करवाने पर तुले हो !
अपनी जिन्दगी का मोह
हम जैसे तमाम छोटे आदमियों की
उपेक्षा में जिन्दा रखते रहो !
दोष मेरा भी है
कि आधी रोटी पाकर खुश हो गया हूँ
तुम्हे बधाईयाँ देने लगा हूँ
मदहोश नाचने लगा हूँ .....
बस, तुम फूले नही समाये
और तुम 'तुम' नही रहे !

मैं भी बदल गया हूँ
अब आग पीकर छक गया हूँ
उगलूंगा .....
तुम्हारी भृष्ट नियति को राख बनाकर ही
तुष्टि पा सकता हूँ !
सारे देश की जनता अब आती है !
सम्हलो, तुम्हारी सरकार जाती है !!

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