Saturday, April 28, 2007

निवेदन

मेरी भावना को ठौर भले ही न दो
पर, इस तरह पेश मत आओ
बेसलीके इन्सान की तरह
तुम्हारी प्रवृत्तियां जैसी हैं, तुम्हे मुबारक हो
वे सभी तुम्हारी करनी और भरनी का
ब्योरा हैं !
मुझे इस शंकालू प्रवृत्ति का
शिकार मत बनाओ !
अपने चौपट समाज में मुझे मत मिलाओ !!
मेरी आदतें तुमसे नही मिलती
तो कोई विशेष बात नही .....
अपनी-अपनी रूचि, अपना-अपना ढंग
मैं तुम्हे बुरा नही कहता हूँ
पर स्वयं दुर्व्यसनी बनने से कतराता हूँ
पाता हूँ, तुम अप्रसन्न.....असन्तुष्ट
और फ़ैलाने लगे अफवाहें
कोरी.....केवल कल्पित, अनाप-शनाप
और कहने लगे -
यह आदमी बेढंगा है
उसे घूरता है
मुझे ताकता है
यानी सब का सब बवंडर ......
एक अच्छा-खासा मजाक तुमने तैयार कर दिया ?
मुझे जानकर दुःख हुआ
तो तुम और हँसे, ठहाका लगाया
पर, जब तुमसे आंख मिलाकर बात की
तुम चुप रह गए ??

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