Monday, April 16, 2007

बढ़ो नव सृजन !

जहाँ कहीं भी मिलें
सीखने को कुछ बातें
फौरन सीखो
कभी किसी की कमी
और अवगुण मत देखो
हमें नही उनसे मतलब है
जो जैसा है, स्वयं भरेगा
हमको तो अपने में भरना

सत-शिव-सुंदर
जहाँ कही भी मिले ढून्ढकर हंसी ख़ुशी से
धीरज-धरकर ।
काले दिन भी काटो
उजली रातें बाटों
संयम भरो, कर्म अवतारो

सही सरल-साहसमय-चिन्तन
दृढ़ता उर से भरो
बढ़ी नव सृजन !

सौम्य सुख-शान्ति दुआरे
हेर रहा है
टेर रहा है नवयुग का निर्माण
सपूतों ! सदगुन जितने भी, अपना सकते, अपनाओ

और सत्य के नव प्रयोग की
सज़ा आरती

मंगल कलश
मनुजता का
स्थापित कर दो !!

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