Tuesday, April 10, 2007

आत्मा चीखती है !

सन बयालीस की क्रान्ति
और मेरा जन्म
आंदोलन पर आंदोलन
आग ही आग
स्वदेश-प्रेम-प्रेमी उन्मत्त हो गए थे सब
गाँधी और नेहरू
बंद कर दिए गए थे जेल में
देश भर में 'अंग्रेजो, भारत छोड़ो' का नारा
बुलन्द था .....
हिन्दुस्तान का नक़्शा बदलने वाला था ।
स्वतन्त्रता
दासता की जंजीरों को तोड़ रही थी

और आदमी
उन टूटी जंजीरों को फ़ेक रहा था
मेरी माँ कहती है -
उन दिनों बाज़ार बन्द था
कही भी कुछ नही मिलता था

चोरी-छिपे सेठ-साहूकार
लोगो की मदद करते थे ।
महादेव सेठ
जिसने मेरे जन्म पर
मेरे बाबा के पास सौंठ और गुड़
चुराकर भेजा था

तभी, मेरे अचेतन मन में भर गया था विद्रोह
और मैं सब हजम कर गया था
किन्तु, आज चिनगारी धधकती है
आत्मा चीखती है
भूख घेरे है
प्यास घेरे है
बेकारी घेरे है, मेरा दुर्भाग्य .....
या कहूँ -
देश का दुर्भाग्य !
मैं इस दुर्व्यवस्था को ख़त्म करना चाहता हूँ
और फिर अपने ढंग से जीना चाहता हूँ
यानी भीख नही मांगना चाहता हूँ
मेरे हाथ-पैर मजबूत हैं
ईश्वर ने सभी कुछ दिया है ।
तो आओ -
जो भी मेरे साथ आ सकें
फरार न होकर के गोली खा सकें ।

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