Wednesday, September 9, 2009

चुभन आज भी बाकी है

आँखों में टूटे सपनो की चुभन आज भी बाकी है
बालों में उसकी उँगलियों की छुअन अब भी बाकी है

ज़माने की लगाई आग तो कब की बुझ गई यारों
मेरे सीने के छालों में जलन अब भी बाकी हैं

कौन कहता है कोई रिश्ता नही रहा उन से
उसके माथे पे मेरे नाम की शिकन अब भी बाकी हैं

छाने लगे अंधेरे तो क्या हुआ
वादों की किरण अब भी बाकी हैं

मुझ से अपना दर्द छुपा नही सकते
मुझ में तुम्हारी नज़रें पढने का फन आज भी बाकी हैं।

No comments:

Post a Comment