उत्तर की ओर वादियों में दृष्टि की गयी तो,
देखता हूँ सिन्धु का निशाँ ख़तरे में है।
दक्षिण दिशा में भी सुदूर दृष्टि की गयी तो,
चन्दन का फूलता विहान ख़तरे में है।
पूरब की ओर चाहे पश्चिम का छोर जो,
देखा पवित्रता की पहचान ख़तरे में है।
सच तो ये आज देखने से लगता है जैसे,
ये सुभाष वाला हिन्दुस्तान ख़तरे में है।
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