Saturday, January 19, 2008

गोधरा की लपटें

रोज सुबह जिस धरती की सूरज करता अगवानी।
जिसके कण-कण में बहता पावन गंगा का पानी।
जिस धरती के नाम विश्व में नामित हुआ समन्दर।
पूरी दुनिया जहाँ जीतकर हारा यहीं सिकन्दर।

जहाँ बुद्ध के श्लोक अहिंसा बापू की गाती हो।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य सा राजा जज्बाती हो।
जहाँगीर का न्याय, नर्तकी जहाँ अजीजन बाई।
आकर जहाँ स्वयं बिक जाते बड़े-बड़े सौदाई।

जहाँ धर्म के लिए पुत्र पर पिता चलाये आरा,
रच देती इतिहास, फाड़ आँचल मरघट पर तारा।
बन जाता 'ध्रुव सत्य' एक बालक जब करे तपस्या,
पूरी वसुधा ही कुटुम्ब है, जिस धरती का नारा।

भक्तों के रथ हांका करते हैं, भगवान जहाँ पर,
पक्षी तक भी मानव हित करते बलिदान जहाँ पर।
मानवता के लिए हड्डियाँ जहाँ दान की जाती,
प्राणों से भी ज्यादा प्यारा है इमान जहाँ पर।

उस धरती पर मंत्र पढ़ रही गिद्धों की टोली है।
शांति दूत बापू के घर में यह कैसी होली है॥

एक महीने से प्यासी हैं गौशाले की गैया।
मस्जिद की दीवालों में अंडे ढूंढे गौरैया।
मन्दिर की मुंडेर पर घायल तड़फ़ रही है मैना।
बरगद कटा पड़ा है कोयल जहाँ बिताये रैना।

जान बचाती बच्ची लेकर कल बकरी थी भागी।
उसे भूनकर स्वयं खा गया आश्रम का बैरागी।
झुलस गयी है नीम कबूतर दोनों मरे पड़े हैं।
कदम कदम पर खंजर लेकर, खूनी बाज खड़े हैं।

जन्म दिवस है, मुन्ना बोला, पापा केक मँगा दो।
जिस पर देश महान लिखा हो, वह गुब्बारा ला दो।
सुबह हो गई इन्तजार में, पर पापा ना आये।
पापा कभी नही लौटेंगे उसको कौन बताये।

ईद आ गई, मम्मी चलकर नया सूट सिलवा दो।
जिस पर नवी रसूल कढा हो वह टोपी दिलवा दो।
मम्मी गई बजार, हो गई ईद, कहाँ खोई है?
कौन बताये उसे, कब्र में अब मम्मी सोई है।

कब आयेगी ईद पूंछती है वह तुतली बोली है?

राखी बाँध रही थी सर पर आकर बम फूटा था।
जान गई, लेकिन भैया का हाथ नहीं छूटा था।
कल शादी है, मण्डप नीचे माँग भरी जायेगी।
फूट-फूट कर सब रोयेंगे जब डोली जायेगी।

रात उठा ले गये दरिन्दे आगे कुछ मत कहना।
हरे बाँस की डोली चढ़कर चली सुबह थी बहना,
आधी जली कुरान, पृष्ठ गीता के फटे पड़े हैं,
जाने कैसी सभ्य अटारी पर हम लोग खड़े हैं।

पेट फाड़ बच्चा निकाल टुकड़े-टुकड़े कर डाले।
कैसे तुमने देखा होगा यह सब ऊपर वाले।
माँ की जली लाश पर कैसे बच्चा खेल रहा है।
डूबी हुई लहू में मुट्ठी दूध टटोल रहा है।

चार अर्थियों का यह बूढा कैसे वजन सहेजा।
महावीर का देश साथियों इसको कौन कहेगा?
शहनाई के टूट गये स्वर डरावने सन्नाटे।
दंगा मार रहा है पूरी मानवता पर चाटे।

क्षत-विक्षत सदभाव लहू में डूबी रंगोली है।

जलती रेल देख, दानवता का भी दिल दहला था।
सभी निहत्थे कार सेवकों पर कैसा हमला था।
कहाँ सफर के द्रश्य लक्ष्य का आंखों में सपना था।
कहाँ सुहागन का जोड़ा तिल तिल कर साथ जला था।

बापू की छाती से चिपकी बिटिया जली भुनी थी।
मम्मी हमें बचालो, इतनी ही आवाज़ सुनी थी।
दादी माँ कूदी गाड़ी से, हुए हजारों टुकड़े।
किसके जले प्रमाण पत्र हैं, सचमुच बहुत गुनी थी।

एक साथ इतने जिंदा लोगों की जली चितायें।
ख़ाक हुआ परिवार समूचा देह बनी समिधायें।
धरती का फट गया कलेजा अम्बर चीख रहा था।
ह्रदय विदारक द्रश्य देखकर रोएँ दसों दिशायें।

क्या कसूर था निर्दोषों का जो यह आग लगाई,
और तापने लगी आग में राजनीति हरजाई।
पार कर गये लक्ष्मण-रेखा रावण बंशी सुन लो।
ब्याज सहित चुकता कर लेंगे हम भी पाई पाई।

संगम में नफरत वाली अफीम तुमने घोली है।
राम अवध में नही राम मिलते शबरी के घर में।
मिलते नही रहीम बाबरी मस्जिद के पत्थर में।
जो चांदी के सिंहासन पर बैठे बोल रहे हैं,
राम नही मिलते हैं सुख सुविधाओं के विस्तर में।

मानवता के लिए पसीना जहाँ कहीं बहता हैं।
परमपिता तो हनूमान के सीने में रहता है,
जहाँ कहीं इमान मुकम्मल, सूर्य चांद तारों में,
नहीं मोहम्मद शाह मिलेंगे नारों अंगारों में।

राम कहाँ है यह सैनिक की विधवाओं से पूछो?
राम कहाँ है यह धरती की विपदाओं से पूछो?
भीख माँगता तीन साल का वह अनाथ रहमानी,
खुदा कहाँ, अंधी आंखों, टूटी बाहों से पूछो?

राम कहाँ मरते 'बाली' की अभिलाषा से पूछो?
राम कहाँ, घायल जटायु वाली आशा से पूछो?
राम नही हैं, माला कंठी घंटा घड़ियालों में,
राम कहाँ हैं, पल्टू, दादू, रैदासा से पूछो?

राम वहाँ हैं जहाँ ग्रीष्म में मलय पवन डोली हैं।
राम कहाँ? हंसते फूलों, उड़ती तितली से पूछो।
राम कहाँ है? इठलाती डाल्फिन मछली से पूछो।
राम कहाँ है? बापू वाले बन्दर जान रहे हैं।
राम कहाँ हैं? सूत कातती उस तकली से पूछो।

राम कहाँ? भागीरथ, गंगा के पानी से पूछो।
राम कहाँ हैं? हरिश्चन्द्र जैसे दानी से पूछो॥
बड़ी-बड़ी पोथियों, किताबों में क्यों भटक रहे हो?
राम कहाँ हैं? ढाई आखर की बानी से पूछो॥

राम कहाँ हैं? नानक के बजते सितार से पूछो।
राम कहाँ हैं? तुम चेतक वाले सवार से पूछो॥
सीता सावित्री अनुसुइया मइया की पावनता,
राम कहाँ हैं? सारन्धा वाली कटार से पूछो॥

कहाँ खुदा है? तुम खुसरों की पहेलियों से पूछो।
कोयल की बोली बुलबुल की सहेलियों से पूछों॥
लैला मजनू की मजार पर एक रात सो लेना।
जो कोढ़ी हो गये, तड़फते बहेलियों से पूछो॥

राम? जहाँ पर कृष्ण सुदामा वाली हमजोली है।
कहाँ खुदा है? मलिक मोहम्मद से फकीर से पूछो।
खुदा कहाँ? दारा शिकोह, शायर नजीर से पूछो॥
नमक हरामी करने वाले, कभी नही समझेंगे।
खुदा कहाँ? अब्दुल हमीद से महाबीर से पूछो॥

नवी रसूल मोहब्बत के हर ताजमहल में रहते।
दिल से निकली शेर शायर, गीत, गजल में रहते।
जाति धर्म का चश्मा आँखों से उतार के देखो।
मानवता के जल में, खिलते हुए कमल में रहते॥

चन्द्रशेखर, अशफाक, भगतसिंह की यारी से पूछो।
वैज्ञानिक अब्दुल कलाम की दमदारी से पूछो॥
पीर निजामुद्दीन औलिया की मजार पर बैठी।
दंगो में लुट चुकी फातिमा बेचारी से पूछो॥

तालिबान में नहीं न चिल्लाती अजान में रहता।
मरते हुए सिकन्दर के गलते गुमान में रहता।
जाति धर्म के नाम किसी का खून बहाने वालो।
अल्ला ताला तो परहित में, रक्तदान में रहता॥

नाम धर्मकांटा है, लेकिन इतनी घटतौली है।
जो गीता में लिखा, लिखा है, वो कुरान के मन में।
जो कहती आयतें वही तुलसी के मधुर वचन में।
कहता है गुरुग्रन्थ प्रेम की बानी असली बानी,
मजहब है, खुशियाँ भरदेना, रोते हुए नयन में।

केसरिया रंग इधर उधर है हरे रंग का बाना।
सत्य न्याय का श्वेत रंग दोनो के बीच मिलाना।
समय चक्र के साथ बनाना विजयी विश्व तिरंगा,
सबसे बड़ा धर्म है मिलकर इसे रोज फहराना।

धरती पर दीवाल खड़ी की गगन बाँटकर देखो।
चांद, सितारे, भंवरे, तितली, चमन बाँटकर देखो॥
बहता खून देखकर बोलो यह किस मजहब का है।
तुम 'हुमायु' से 'कर्मवती' सी बहन बाँटकर देखो॥

लाठी से न बंटेगा पानी, पुरखों की बोली है।
भले शक्ति से जीत लिया तन, मन न जीत पाओगे।
लाशों के ऊपर चढ़कर तुम कैसे मुस्काओगे।
बस्ती-बस्ती आग लगाने वालों इतना सुन लो।
इसी आग में एक रोज तुम सब भी जल जाओगे।

इतने युद्ध जीतकर भी राजा अशोक था हारा।
दुनिया कहती रही उसे तब तक आपी हत्यारा।
लेकिन जिस दिन सिंहासन तज बौद्ध भिक्षु बन बैठा
पूरी दुनिया झुकी चरण में, हुआ महान सितारा।

इधर आग है उधर नशे में डूबा है सिंहासन।
राजभवन को केवल चिंता हिले न अपना आसन।
जलती हुई चिता में रोटी सेंके जहाँ सियासत
कैसे वहाँ अखण्ड रहेगा अपना प्यार भारत।

मरे हजारों, लाखों घायल, फिर भी ये बेशर्मी।
दंगे की कर रहे वकालत कुछ पागल हठधर्मी॥
जागो देशवासियों अब चुप रहना ठीक नहीं है।
टुकड़े-टुकड़े मुल्क न कर दे कुर्सी बड़ी कुकर्मी॥

चोला रँगा बसंती रँग में निकल पड़ी टोली है।
हर सवाल पर प्रश्न उठाने वाली दिल्ली बोली?
कुछ तो, घर घर आग लगाने वाली दिल्ली बोलो?
पाँच साल में राम राज्य धरती पर लाने वाली,
नफरत वाले बीज उगाने वाली दिल्ली बोली?

आहत हंस हुआ तो भाई से लड़ जाने वाले।
शरणागत के लिए तुला पर खुद चढ़ जाने वाले।
एक रेल दुर्घटना पर जो 'इस्तीफ़ा' देते थे,
कहाँ गये वे राजा, नई राह गढ़ जाने वाले?

विश्व शांति के नारों वाला वह जज्बात कहां है?
सीतापति की नीली आँखों का जलजात कहाँ है?
चीख-चीख कर पूछ रही है आश्रम वाली बकरी,
राष्ट्रपिता बापू वाला बोलो गुजरात कहाँ है?

कहते थे हनुमान स्वयं को, चुप कैसे वह बानी?
कहाँ गया है ब्रह्मचर्य का दिल्ली बोलो पानी?
कवि की कलम जगाने आई बहरी संसद सुन लो।
भगत सिंह अब भी जिंदा है, सोई नही जवानी।

समझदार हो गई प्रजा उतनी न रही भोली है।

क्या गणेश शंकर वाला बलिदान व्यर्थ जायेगा?
संत पोरबन्दर वाला क्या कभी नही आयेगा?
कैसे रह पायेंगे यह सब देख पीर पैगम्बर।
'सारे जहाँ से अच्छा' भारत गीत कौन गायेगा?

नेता जी सुभाष के सपने चूर न होने पायें।
रामानन्द कबीर कभी भी दूर न होने पायें।
विनम्रता शासन में हो लेकिन पटेल की द्रढ़ता,
बहुमत के खातिर सत्ता मजबूर न होने पाए।

जो अनाथ हो गये उन्हें अपनाकर प्यार लुटाएं।
हर बूढी लाचार देह की अब लाठी बन जाएँ।
प्रायश्चित की बेला है यह, मिलकर कसम उठाएं।
पुनः 'गोधरा' जैसी कोई रेल न जलने पाए।

ईद दीवाली साथ मनाये, खाये मिलकर खाना।
साथ पढें हम 'नात' साथ में गायें फाग तराना।
पंडित पढ़े निकाह और काजी भंवरी डलवाए।
प्रगति करे नित देश एक ही सबका रहे निशान।

मुस्कानों से भरे आंसूओं से जो तर झोली है।
दुश्मन है फिराक में अपना भाई चारा टूटे।
दुनिया को जो दिशा दे रहा वह ध्रुवतारा टूटे।
पर्वतपति नगराज हिमालय का मस्तक झुक जाये,
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाईवाला नारा टूटे।

सीमा पार दुश्मनों को मिल, अन्तिम पाठ पढ़ायें।
एक रहे हैं एक रहेंगे, दुनिया को समझायें।
तुम खाओ सौगन्ध राम की हम कुरान की कसमें,
भारत माता का ही केवल मंदिर भव्य बनायें।

मन्दिर के दीपक से मस्जिद के चिराग रौशन हों।
सिर्फ एक नारा भारत में प्यारा, जन गण मन हो।
मस्जिद में जब धूप जले तो ऐसी खुशबू फैले,
महके मन्दिर का हर कोना, जैसे नन्दन बन हो।

सिंहासन के लिए देश में भरत तलाशा जाये।
पनघट से पशु पक्षी कोई कभी न प्यासा जाये।
आपस के सारे झगड़ों को मिलकरके दफनायें।
'सत्यमेव जयते' पत्थर में सिर्फ तराशा जाये।

विश्व गुरु ने आँख तीसरी अब फिर से खोली है।

No comments:

Post a Comment