Thursday, January 31, 2008

परिणय

कल्पना के पंख ओढे
आ गयी
ऋतु अब मिलन की
भावना ले
मंडपो में
दूरियाँ बस कुछ पलों की ।

प्रेम को परिणय
मिला है
नयनों को दर्पण
मिला है
अब नही
बनवास बाक़ी
दूरियाँ बस कुछ पलों की ।

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