छायी फगुनाई की सुहानी मौसमी बयार,
रूप के सिंगार को संवार गयी होली में।
यौवन डुलाती मदमाती मनभाती मन,
मोहिनी-सी मूरति उतार गयी होली में।
चंचलाती आती लहराती बल खाती अंग,
अन्तर के तार झनकार गयी होली में।
सौरभ लुटाती इठलाती बलखाती अंग,
रंग की फुहार रस डार गयी होली में।
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