देश की स्वतंत्रता की अर्धसदी के ही मध्य,
शान्ति के स्वरुप का वितान जलता गया।
विविध विवाद, प्रतिवाद, धर्म जाति वाद,
में ही घिर राष्ट्र संविधान घलता गया।
कांड दर कांड में विलुप्त हुए नेतागण,
भ्रष्टाचारियों के बियाबान फलता गया।
'सरस' समाज की सुसुप्त अवधारणा में,
देश प्रेमियों का स्वाभिमान ढलता गया।
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