Wednesday, January 30, 2008

माँ शारदे!

माँ शारदे, माँ शारदे! अन्तर मेरा झंकार दे।
दे शक्ति स्वर में ही सरस, रस प्रेम का संचार दे॥

वाणी प्रखर हो ओज संयत,
लेखनी में विविधता।
साहस, प्रबल स्वाधीनता,
विश्वास-बल में प्रचुरता।

कंचन कलश में भाव भर, अन्तर 'सरस' उपचार दे।
माँ शारदे, माँ शारदे! अन्तर मेरा झंकार दे॥

दीपक जला दो क्रान्ति का,
अब अर्चना मेरी यही।
अभिव्यक्ति भर दो ज्ञान की,
माँ वन्दना मेरी यही।

धर दे धरा पर ज्ञान दीपक, दृष्टि का विस्तार दे।
माँ शारदे, माँ शारदे! अन्तर मेरा झंकार दे॥

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