Thursday, November 1, 2007

ऐसी तलाश पे निकल चला हूँ मैं
ना शुरुआत का , न अंत का पता
ऐसा खोया हूँ मैं इसमें यारों
ना सुबह का , ना शाम का पता

हमदर्दी कर सकते हैं वो,
खुद का दर्द जिनका हो कम,
बेदर्द ना समझना हमको तुम,
अपने भी है यारो लाखों गम.

अपनी तो हर शाम एक नशे में
गुज़र जाती है, इक दिन शाम नशे में
होंगी और हम गुजर जायेंगे.
 

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