Thursday, November 1, 2007

आज भी मेरा मन जाने क्यों जीने को नही करता है ,
फिर भी तेरी बातें सोचकर ये चेहरा हँसा करता है,
आज भी ये दिल जाने क्यों सपनो में खोया रहता है,
छुप छुप के किसी कोने में ये आज भी रोया करता है,
मेरा ही अक्स जाने क्यों अक्सर मुझसे ये सवाल करता है,
आज भी क्यों वो मुझमें तेरा ही चेहरा देखा करता है,
जाने अन्जाने में ये दिल बस तेरी ही बातें करता है,
जाने क्यों कुछ सोचकर फिर शरमा जाया करता है ,
आगे बढ़ते हाथ जाने क्यों रूक जाया करते है,
शायद कुछ अनहोनी सोंचकर कुछ भी छूने से डरते है,
एक ख़याल मेरे जेहन में आज भी उठा करता है,
तू ही मेरा वजूद है और ये दिल तुझसे ही डरता रहता है,
जाने क्यों ऐसा होता है,
क्या रात के बिना सवेरा भी कही हुआ करता है........
 

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