Thursday, November 1, 2007

"हवेलियों में शाम.. बहुत रंगीन मिलती है,
और ग़रीबों के घर में.. बड़ी ग़मगीन मिलती है.'

'बाग़ में जाओ अकेले.. गुलों में बैठो अब,
भीड़ जितनी भी है, तमाशबीन मिलती है.'

'बिक रहा आज भी शहर में, नया कुछ तो नहीं,
गोलियाँ, तेग, कफ़न.. सरज़मीन मिलती है.'

'कारखाने में ढूँढते हो.. क्यों इन्साऩों को??
यहाँ पे बेदिली या फिर मशीन मिलती है.'

'पी के देखो तो आब.. आप इस नदी का कुछ ,
ताज़गी हर लम्हा.. ताज़ातरीन मिलती है.'

'रात को ख्वाब में, मैंने खुदा को देखा था,
वरना कब बंदगी.. इतनी हसीन मिलती है !!!'

'सिर पे कितने ही.. आसमां उठा के आप फ़िरो,
सबको पैरों तले.. हर पल ज़मीन मिलती है.'

'बात करने की ना फ़ुर्सत.. किसी को दुनिया में,
ज़िन्दगी जैसे कोई.. महज़बीन मिलती है.'

'लाओ तशरीफ कभी.. मेरे घर भी तुम यारब !!!
ग़ज़ल हमारे यहाँ.. बेहतरीन मिलती है....!!! "
 

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