Thursday, November 1, 2007

जो दुनिया के इल्ज़ाम आने थे आये,
बहुत गम के मारो ने पहलू बचाये !
न दुनिया ने थामा न तूने सम्भाला,
कहाँ आके मेरे कदम डगमगाये !
किसी ने तुम्हे आज क्या कह दिया है,
नज़र आ रहे हो पराये-पराये !
मुलाकात की कौन सी है यह सूरत,
न हम मुस्कुराये न तुम मुस्कुराये !
उलझते है हर राह् पे अब तो काँटे,
कहाँ तक कोई अपना दामन बचाये !!!

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