Thursday, April 12, 2007

वेग से बढ़ो

कहॉ नही है राह ?
आदमी जहाँ चल दिया
श्रम-साहस ने
सत्य लगाकर गले
सभी का प्यार ले लिया ।
हंसी-ख़ुशी बिखरी
सुविधाएं सब घिर आयीं
जहाँ आदमी ने द्रढता से चरण धर दिया

नही असम्भव कहीं आज कुछ
केवल बल की बात
लगनमय ले करके विश्वास
यहाँ जो भी जागा है
उसे देख दुर्दैन्य-निराशा-दुःख भागा है
कहीं नही अवरोध

करो नव शोध
द्वार पर किरण

किरन-सी-प्रीति
प्रीतिमय खेल
खेल संसार
भुलावा मत दो कोई आज
चलो रे चलो
सब कहीं राह
भटक कर मत बैठो गुमराह
बिचारा रोयेगा उत्साह
बढ़ो रे, बढ़ो !
वेग से बढ़ो !!
ठहर जाना जब आये रात !!

No comments:

Post a Comment